☆ य़ह तेरी बुनी कहानी ☆******
☆ य़ह तेरी बुनी कहानी ☆******
पुकारता फकीरों सा
पीट रहा हूँ
समाज पर अपने
खीची गई वह लकीर
जो हृदय के
धङकनों को थमा दे
बहता लहू रगो
में जमा देे।
व्याधियों की यह बस्ती
अराजक दिन रातेें
मग्न मैं हो लूँ
किन गलियों में ये बातें,
ध्वस्त होती जीव
मूल्यों की मूर्ति
नर्क जीवन बना दे
हंसी इरादों में सारे
आग लगा दे।
इस वैतरणी में
नाक के ऊपर
अब जाता पानी
आ सामने, कर सहायता
मैं तो एक अदना
यह सारी है
तेरी बुनी कहानी।