STORYMIRROR

नमस्कार भारत नमस्ते@ संजीव कुमार मुर्मू

Abstract Tragedy Inspirational

4  

नमस्कार भारत नमस्ते@ संजीव कुमार मुर्मू

Abstract Tragedy Inspirational

यह मकान बिकाऊ है

यह मकान बिकाऊ है

2 mins
414

मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


सालों बाद अबकी

निर्मुणि की हिम्मत

इज्जत के पक्के

बहुधा के कच्चे

इज्जत के सवाल

हिम्मत दे जवाब


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


कुटुंब जा चुके वर्षों

अपनी जात अकेला

नहीं कोई बांधे हिम्मत

दिल पर पत्थर रख

मकान पर दिया लिख

"यह मकान बिकाऊ है"


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


गिरे को सब मरते

यह बात और कि

गिरे मारे सबको


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


देर शाम पड़ोसी

बनकर लिवाल 

यही पड़ोसी धर्म

पड़ोसी बीके तो

झट लो खरीद 


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


अपने लिए विस्तार

पलायन जरूरी पड़ोसी 

मय समान क्या लोगे

भूखंड टीन टप्पर 

और गृहस्थ समान


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


पार्टी दांव की जमीन

हाथ लगते कहा देख 

सौदा मंजूर बैठते कल 


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


बयाना देने ना जरूरत

बयाना देने की जरूरत

जब लेवाल कमजोर

वजनदार हो देवाल


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


घर का बांध सामान 

आखरी रात खाट पर 

पड़े-पड़े आड़े मकान 

वह गिनते खो गिनते  

सपनों में मकान यही 


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


जिसके आंगन खेला

लंगड़ी और रप्पक

दीवारों पर जिरोती

बनाए फूल फूलवास


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


आलो छुप छुपा 

कंचे रख कनेर 

खूंटियो टांगे बस्ते

दीवारों पर तस्वीर

स्वर्गीय माता जी


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


आड़ों झूले बांधे 

इसी झूला झूले 

नींद आ गई


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


देख सपने हरदम

चीरने आमद फाड़ने 

बत्तीस दांतो जीभ बीच 

भयमुक्त बीमारी में स्वाद

कालिकाए साथ छोड़े


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


जीभ को नहीं भय 

दांत गिर गिर गिरे

जीभ नहीं कहीं  

जीभ है शाश्वत 

दांत होता आगत


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


सहसा टूट सपना  

अंदर लगा जुड़ने

आदमी जहां खड़ा

क्या वहीं खड़ा रहे

दया सहारे रहे पड़ा 

जड़ता का नाम नही 

पलायन पुरोगमन

परि लड़े स्थियो एक 

स्वप्न टूटे दूसरा गड़े


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


सुबह मकान बिक्री हैं

जाहिर सूचना "न" लगा

घर का सामान लगा 

 पुनः जमाने


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


यह देख अफवाहें तेज़

बाहर फिर निकल कर

 मिटाया लिखे "म" 


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 


अब उसके कान

दिल की आवाज

घर मानो लौटे 

"नूतन गृह प्रवेश"


मुहल्ले ना पहली बार

कुटुंब में कीच कीच 

कबीलों नई कलह 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract