ये कैसी समानता।
ये कैसी समानता।
ये कैसा संसार,
इसमें क्यों इतना भेदभाव,
क्यो इतना टकराव,
एक तो है मालामाल,
दूसरा रोटी से भी मोहताज।
कोई तो घूमता गाड़ीयों में,
हर रोज नये ठाठ-बाट,
नहीं रखता पांव जमीं पर,
और एक सर पे छत से भी मैहरूम।
हे भगवान। क्यों इतना विरोधाभास,
मेरी बात मान लें,
सबको समानता दिला दे,
न कोई छोटा न कोई बड़ा,
न कोई रहेगा भेदभाव,
सबको मिलेगा वो,
जो चाहिए होगा उसको।
क्या ये सब होगा,
या "अनिल" की मात्र कल्पना,
चलो ऐसे ही दो दिल को दिलासा,
भलां भगवान कहां,
गरीबों की सुनता।