ये कलयुग है
ये कलयुग है
उन्होंने सूखी चावल खिला के भी तारीफें बटोरे,
और यहां हमने पूरी बिरियानी खिला के भी सिर्फ ताने ही बटोरे..
फर्क सिर्फ इतना हीं है, ये कलयुग है
यहां जो दिखता है वो बिकता है।
उनकी मीठी चापलूसी भरी बातो की लोगो ने काफी सराहना की,
और हमारी सच्ची कड़वी बातो की तो सिर्फ और सिर्फ समालोचना हुई..
फर्क सिर्फ इतना हीं है, ये कलयुग है
यहां मिठ बोलो की जय जयकार है और सच्चे इंसानों की हाहाकार है।
उनके कूटनीतिक स्वभाव को लोगो ने समय की मांग समझा,
और हमारे स्वाभिमानी ईमान को तो लोगो ने सिर्फ और सिर्फ हमारा अहंकार समझा..
फर्क सिर्फ इतना हीं है, ये कलयुग है
यहां बहरूपियो के लिए लोग ताली बजाते हैं और ईमानदारो को तो सिर्फ कटघरे में खड़ा करवाते हैं।।
