ये "इश्क" कोई सवाल थोड़ी है ।
ये "इश्क" कोई सवाल थोड़ी है ।
चुरानी पड़ती हैं नजरें।
पलकें झुकाना "इज़हार" थोड़ी।
जीना पड़ता है किताबों में छुप कर।
तुझे "जी भर" देखना आसान थोड़ी है।
पसंद आती है खामोशी हमें।
तुझे खुद में सुनना "आवाज़" थोड़ी है।
रहना पड़ता है क़रीब खिड़कियों के।
"झाँकना" इंतज़ार थोड़ी है।
फेरनी पड़ती तुझे दूर से ही देख कर नजरें।
तेरे क़रीब से गुज़रना "ज़रा सी" बात थोड़ी है।
पूरा पल लग जाता है बेतरतीब धड़कने संभालने में।
तुम क्या ही समझोगे ,
ये इश्क़ कोई "सवाल" थोड़ी है।
