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Vandana Gupta

Inspirational Classics

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Vandana Gupta

Inspirational Classics

ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना

ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना

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साहेब

ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना है

जो नहीं आतीं जंघा के नीचे

फिसल जाती हैं मछली सी

तुम्हारी सोच के दायरे से

बेशक नवाज़ दो तुम उन्हें

अपनी कुंठित सोच के तमगों से

उनकी बुलंद सोच बुलंद आवाज़

कर ही देगी ख़ारिज तुम्हें

न केवल साहित्य से

बल्कि तुम्हें तुम्हारी नज़र से

ये आज की स्त्रियाँ हैं

जो नहीं करवातीं अब

चीरहरण शब्दों से भी

और तुम तुले हो

एक बार फिर द्रौपदी बनाने पर

संभल कर रहना

निकल पड़ी है

बेहयाओं की फ़ौज लेकर झंडा

अपनी खुदमुख्तारी का

सुनो

बेहया शब्द तुम्हारी

सोच का पर्याय है

स्त्री की नहीं

वो कल भी हयादार थी

आज भी है और कल भी रहेगी

बस तुम सोचो

कैसे खुद को बचा सकोगे

कुंठा के कुएं में डूबने से

कि फिर अपना चेहरा ही

न पहचान सको

सुनो

मर्यादा का घूँघट इस बार

डाल कर ही रहेंगी ये स्त्रियाँ ...

तुम्हारी जुबान पर !!


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