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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Children

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Children

ये बचपन कितना नादान होता है

ये बचपन कितना नादान होता है

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ये हमारा बचपन कितना नादान होता है

हर ग़म से ये कितना अनजान होता है

ना मान की इच्छा, ना अपमान का भय,

ये बचपन पूरी जिंदगी का गान होता है


पर आजकल इस भोले बचपन पर यारों, 

मोबाइल का बहुत ही अत्याचार होता है

ना खेलना, ना कूदना, फोन देखते रहना

आजकल खेलना-कूदना फोन पे होता है

ये बचपन भी कितना नादान होता है


कहने को आज फेसबुक पे मीत हज़ार,

पर दुःख में मेरे कोई साथ नहीं होता है

मेरे बचपन मे हर दोस्त मेरे पास होता है

आज के समय में बस दिखावा होता है

ये हमारा बचपन कितना नादान होता है


तकनीक पर इतना भी निर्भर मत होना,

ये बचपन केवल अतीत बनकर रह जाये

बच्चे को फ़ोन नहीं खुला हुआ मैदान दो

जीते जी उसको जन्नत का वरदान दो

ये बचपन बिना तकनीक के जिंदा होता है

ये हमारा बचपन कितना नादान होता है



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