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मनीषा सोनी

Fantasy

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मनीषा सोनी

Fantasy

"ये अंबर नितांत मेरा है"

"ये अंबर नितांत मेरा है"

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दोस्त.... मैं तुम्हारी मनु...

सोचती हूं अक्सर 

मेरे तुम्हारे बीच ये जो धागा है 

इस रिश्ते को कोई नाम पहना दूं 

मगर खोज नहीं पाती हूं कोई मुफीद लफ्ज़ 

जिसे मेरे तुम्हारे इस अनाम रिश्ते को 

पहना सकूं पूरा पूरा,

मैं तुमको सोचती हूं, मैं तुमको देखती हूं 

उन तमाम पलों में, 

जब तुम साथ नहीं होते 

मैं कल्पना की छलांग लगाती हूं और बुन लेती हूं 

एक सुनहरी झालर आने वाले कल की 

उन तमाम पलों में, जब तुम साथ होते हो...!


दोस्त..... मैं तुम्हारी मनु ...

तुमको महसूस करती हूं 

अपने आस - पास हर पल 

तुमको बहता हुआ पाती हूं खुद मैं 

और किसी उफनती नदी सी 

तुम में खो जाना चाहती हूं 

तुमको अपना समंदर करके 

मैं कभी चाहती हूं की तुम पर हुक्म चलाऊं 

गोया तुम गुलाम हो मेरे 

और कभी - कभी तुम्हे चाहती हूं पूजना 

जैसे मैं तुम्हारी राधा और तुम श्याम हो मेरे...!


दोस्त.... मैं तुम्हारी मनु..

जानती हूं दो किनारे से हम है 

जो अपनी बंदिशों में बंधे साथ बहते तो है 

मगर मिल नहीं सकते 

मिलन से कहीं ज्यादा मैं उस साझेपन से आनंदित हूं 

जो मेरे तुम्हारे दरमियान बहता है 

कभी तुम्हारे नैनों को छूकर आता है 

कभी मेरी आंखों से लगकर बहता है...! 


दोस्त.... मैं तुम्हारी मनु...

सोचती हूं 

हर एहसास को नाम देना जरूरी है क्या 

मैं यूं ही चाहती हूं इस अपने को जीना 

जो सिर्फ मेरा है 

मुझसे जिस तक जाने में ना कोई दीवार है 

रिवाज की, समाज की, 

ना कोई तकल्लुफ है ना मजबूरी है न बंदिशों का घेरा है..! 

मैं तुम्हारे प्रेम में भीगी उड़ रही हूं 

अपने निजी आसमान में, 

और चिल्ला चिल्ला के कह रही है 

ये अंबर नितांत मेरा है, मेरा है...।।



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