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लोकेश कुमार 'रजनीश'

Tragedy

4  

लोकेश कुमार 'रजनीश'

Tragedy

यातना

यातना

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घुट-घुट कर जीती रही, खूब सही यातना

अंदर ही अंदर टूट गई, दिया किसी ने साथ ना||


 सुनो!! पहले यह बताओ क्या सुन सकोगे दर्द मेरा?? 

 मैं वो मनहूस रात रही  जिसका नहीं था कोई सवेरा||


 माँ जैसी सास मेरी, मुझसे यही कहती रही

हाय जन्म बेटी को दिया, मैं यही ताना सहती रही||


 प्रसव-पीड़ा को कभी उसने भी झेला होगा

 लिंगभेद से भी ऊपर, यह दुख रहा होगा!!


 इंजेक्शनों की मोटी सुई, जब शरीर को छेदती थी

 बेहोशी की हालत में भी, बहुत पीड़ा देती थी||


 इधर प्रसव पीड़ा, उधर स्थिति खतरनाक हुई

 पेट चीर दिया गया मेरा, तब बेटी पैदा हुई||


 असहनीय दर्द झेलकर, खुशियों का तो तोहफा दिया

 मगर इस सर्जरी ने, जीवनभर के लिए पंगु बना दिया||


अरे !तुम तो काँपने लगेदर्द मेरा सुनकर( कहते -कहते रोने लगती है_)

ज़रा-सी कहानी बाकी, सुनो, दिल अपना थामकर ||


 बच्ची का मुँह देख कर, मैं खुश होती रही

 यह देख सासू माँ मेरी, अपना माथा पीटती रही||


 दुधमुँही बच्ची भूख से बिलखती रही

 एक तरफ बदहवास में भी तड़पती रही||


 जैसे तैसे हिम्मत जुटाकर, बच्ची को पाला मैंने

 इधर घर, उधर बच्चे और खुद को संभाला मैंने||


 आज भी जब कभी, वो वक्त याद आ जाता है

 कुछ भी बयां करते, कलेजा मुँह को आ जाता है||


 अरे! तुम तो रोने लगे हो, हाल मेरा सुनकर

 हृदय में गूँजता रहेगा,वो वक्त सवाल बनकर||


मैं अपने बच्चों को अक्सर , एक बात बतलाती हूँ 

 बेटा-बेटी में भेद नहीं, यही समभाव सिखलाती हूँ ||



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