राम से रावण हो गये
राम से रावण हो गये
राम से रावण हो गये...
पहली बार जब मिली तुमसे
मैंने देखा था,
ख़ुद के लिए सच्चा प्यार
तेरी आँखों में।।
उसी वक़्त चाहा, माँगा
ईश्वर से कि
ये ‘राम’ मेरा हो जाये।
सपना संजोया साथ जीवन
गुजारने और उम्र भर
प्यार करने का मगर
सब क्षणिक था।
आखिर ख़्वाब ही तो था , टूट गया।
आँख खुली तो समझ आया
आखिर,
पुरुष, पुरुष ही होता है।
अपनी (पुरुष) प्रवृति के अनुसार
भोगने लगे तुम, मुझे
>
नोचने लगे मेरा
भूरा भूरा बदन, नहीं जानते ??
दिखाऊँ, अपनी पीठ पर
तेरे नाख़ूनों के निशां
जो बयां करते हैं,
तेरी हवस और मेरी बेबसी को।
तेरी कभी ना मिटने वाली,
देह की भूख ने
निचोड़ लिया है मेरा प्राण-रस।
निस्तेज, ज़िंदा लाश बनकर,
काट रही हूँ जीवन।
मैं करती रहूँगी तुम्हें प्यार,
क्योंकि,
मैंने सच्चा प्यार किया है।
बस, ये मेरा
आखिरी ख़त है, मगर
याद रखना
तुम राम से रावण हो गये हो !!!
–(तुम्हारी “प्रि’ये”)