यादें
यादें
आज खोली अलमारी तो मिली कुछ यादें।
वही हसीन पल वहीं हसीन बातें।
इतने सालों में जिन्हें भूल सा गया था ,
आज मेरे सामने ही हैं वो सारी मुलाकातें।
पुराने पन्नों की खुशबू का अंदाज़ कुछ बयाँ कर रहा था।
या इतने सालों तक उन्हें बन्द रखने की शिकायत कर रहा था।
हाथों से सहला में भी उन्हें मनाने की कोशिश पर था,
गुस्से में उनका फड़फड़ाना भी कुछ लाज़मी सा था।
हर दिन के सुख दुख को सुनने के लिए कान उन्हीं के रहा करते थे।
पन्नों की आवाज़ उनसे बेहतर थी जो इस्तेमाल अपनी जुबान किया करते थे।
हर शाम जो बेसब्री से मेरी कलम का इंतज़ार किया करते थे,
वही छूने से खिल जाते थे क्योंकि पहचान मेरे हाथ लिया करते थे।
रोज़ कलम की स्याही ख़त्म करने का जो ज़रिया था।
वही बना बैठा आज धूल के लिए तकिया था।
जिसे आज भी पढूँ तो याद आ जाता है,
वो समय जो मेरे लिए सही मेरे लिए बढ़िया था।
