याद हो तुम
याद हो तुम
....हू-ब-हू याद हो तुम।
तुम्हारी नाक में तुमने जो लौंग पहनी थी,
लाख मना करने के बाद भी...
उसकी नक्काशियाँ याद हैं।
न जाने क्यों;
तुम्हे भूलना मुमकिन नहीं लगा।
हमने कोशिशें नहीं की,
ये बात भी बेमानी है।
हम जानते हैं,
हम तुम्हे नहीं भूल सकते।
तुम्हारे हथेली पर लगी चोट के निशान
अपनी हथेलियों पर महसूस करते हैं हम आजतक।
हू-ब-हू याद हो तुम।
तुम्हारे चेहरे पर उन दागों के बावजूद
तुम कितनी खूबसूरत थी,
तुम्हारे नाराज़ हो जाने के बाद भी...
तुम्हारे चेहरे का हर हर्फ याद है।
जानते हैं; कहा था तुमने,
तुम्हे भूल जाने को।
ग़र हो सकता तो फिर से प्रेम कर लेने को।
हमने फिर से प्रेम किया भी,
मगर तुमसे ही।
सर्दियों की टपकती ओस में हम तुम्हारी ख़ामोशियों को सुन सकते हैं आज भी।
हू-ब-हू याद हो तुम।
तुम्हारी आँखो की रंगत से लेकर तुम्हारी आवाज़ तक जेहन में बरकरार है,
जो तुम्हे कतई पसन्द नहीं था... तुम्हारा गुनगुनाना याद है।
पता है बुरा क्या है!
हमें मालूम है, तुम कभी लौटकर नहीं आओगी।
मगर जिन रास्तों पर हम मिले थे,
हम आज भी उनपर मुड़कर देखते हैं कि शायद...
हू-ब-हू याद हो तुम।
तुम्हारी हँसी आज भी कमरे के खालीपन में गूंज जाती है,
सीने में भीतर कहीं दर्द उभर आता है...
तुम्हारे हथेलियों की लकीरें याद हैं।
मगर कि तुम उदास मत होना। तुम्हारी कही हर बात,
तुम्हारे लिखे ख़तों के हर्फ,
तुमसे हो कर गुजरे हर रास्ते,
तुमसे पहली मुलाकात और
तुम्हारा अलविदा कहे बगैर चले जाना याद है...
मगर कि तुम उदास मत होना।
तुमको हम भूल नहीं सकते हैं।
हमें सब कुछ याद है,
हम याद करते हैं बस कभी-कभी...
दीवार पर टँगी तुम्हारी तस्वीर को देखकर...
