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Neelam Patni

Abstract

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Neelam Patni

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व्यथा स्त्री की

व्यथा स्त्री की

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सुनो व्यथा मेरी ,

स्त्री हूँ

मेरा रहन-सहन मेरा तरीका ,

क्यों कोई और सिखाएं मुझे जीने का तरीका ?


हो रहा यह कैसा जुल्म बाहरी आवरण पर चोट- खरोच

अंदर से टूट चुकी दुबारा उठ खड़ी हो ,

न जमी कुछ कहे ना आसमा,

हिम्मत से स्वयं को जगा


जिन्हें ना फिक्र तेरी ,ना हो तुझ से सहमत

न रख एहसान, न कर इन पर रहमत

तू मजबूत है ,तेरे होने से ही सपूत है ,

तू बलिदानी, तू है त्यागी

फिर भी जुल्म करे मायावी,


सब चुपचाप सह जाती

रोने की आवाज भी ना आती ,

ना करें ऐसा एहसास आवाज उठा ,

हिम्मत रख, लोगों की खासियत परख

तू -चल ,तू -चल राह नहीं है आसान

तू चल उम्मीद की किरण लिए

तेरे दिन भी आएंगे जवान,


दुनिया न सोचे तू क्या हुआ, तू स्वयं सोच

तू ही मजबूत है ,तू ही सपूत है

जिसे जो करना है कर ले ना

अडिग हो मन से अबला,

ना कर किसी पर एहसान ,

खुद की जिंदगी भी तो जी ले ना.


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