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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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व्यंग्य - कबाब में हड्डी

व्यंग्य - कबाब में हड्डी

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महाकुंभ में हुई एक घटना के बाद 

विपक्ष के एक नेता जी रोज रोज 

अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं,

अनर्गल आरोप लगा रहे हैं 

तरह तरह के उलूल- जुलूल सुझाव दे रहे हैं 

लगता है स्वयंभू भगवान हो गए हैं।

एक बात वे बार-बार कह रहे हैं 

भाजपा के राज में शाही स्नान की परंपरा टूट गई,

अब भला इनको कौन समझाए?

पहले ये तो सोच लेते कि अर्धकुंभ और कुंभ के सिवा 

इससे पहले महाकुंभ किसके राज में हुआ?

क्या उनके या उनके पिता जी के राज में?

शायद इसीलिए उन्हें समझ नहीं आता 

ये सनातनी सौभाग्य है 

कि देश-प्रदेश में भाजपा सरकार 

और मोदी योगी के हाथ सरकार की बागडोर है।

तब जाकर महाकुँभ इतिहास लिख रहा है 

नित नव आयाम गढ़ रहा है।

ये सब माँ

गँगा की कृपा और सनातन का प्रताप है 

कि एक योगी के हाथ में आजादी के पहले या बाद में

आजाद भारत के पहले महाकुँभ आयोजन की पतवार है,

इसीलिए महाकुंँभ का मुहूर्त भी तब आया 

जब भगवाधारियों का दौर लौट आया 

या कहें घूम घामकर वापस आया 

अथवा माँ गंगा, यमुना, सरस्वती जी ने 

संदेश देकर महाकुँभं के लिए बुलाया ,

पर हमारे देश के कुछ नेताओं को

कबाब में हड्डी बनने का शौक अभी तक है चर्राया,

तभी तो उनके समझ में पहले भी नहीं आया 

आज का आप सब देख ही रहे हैं,

आगे आयेगा भी, ये राम जी जाने 

वैसे भी जैसा मेरे सूत्रों ने बताया 

इन सबकी फाइल का नंबर अभी बहुत पीछे है भाया,

अब आप सोचिए! कि ये सब मेरा भ्रम है 

या फिर राम जी कोई नयी माया।



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