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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम

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एकदूजे का सहयोग करना

आपस मे कभी नही लड़ना

यही तो कहलाता है

वसुधैव कुटुम्बकम

सब माने पूरी धरा को परिवार

सबके दिलों मे हो प्यार ही प्यार

तब ही तो होगा रामराज्य का जन्म

सोचना अलग है,करना बड़ी बात है

रोते तो सब ही है

रोते को हँसाना बड़ी बात है

करते है सबके दुखो को कम

वही तो है वसुधैव कुटुम्बकम

रब ने धरती बनाई है प्यारी

हमारे लिए सजाइ है क्यारी

विविध फूलों से ही बनती है

इस धरती की गंध

आओ सब मिलकर रहे

सबके सब हम एक रहे

एक दूजे के लिए जीये

एक दूजे के लिए मरे

यही है सुंदर समाज का निबंध



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