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Kalyani Nanda

Abstract

3.5  

Kalyani Nanda

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वसन्त आयो रे

वसन्त आयो रे

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सूखे पत्तों की सरसराहट,

नव किशलय की मुस्कुराहट,

आम के बागों में कोयल की कुहू तान,

नीले अम्बर में चिडियों की चहचहाहट,

बागों में भँवरों की गुनगुनाहट,

जैसे कह रहा है, वसन्त आयो रे

वसन्त आयो रे।


रंगो की फुहारों के साथ,

गोरी के पायल की झंकार,

दूर से बजती वंशी की धुन,

पलाश के रंगो से सजता पेड़,

प्यारे पिया का चंचल नयन,

जैसे कह रहा है, वसन्त आयो रे

वसन्त आयो रे।


प्रेयसी राधा का व्याकुल मन,

कृष्ण कन्हैया का चंचल चितवन,

कदम्ब तले मिले दो प्यासे मन,

यमुना देखे, देखे वन, गगन, पवन,

प्यार से प्रिय कहे, सुन प्यारी सुन,

लगता है वसन्त आ ही गयो रे,

खुशी से डोले, प्रेम से जुड़े दो मन,

सच में वसन्त आयो रे।

वसन्त आयो रे।


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