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Dharmesh Solanki

Abstract

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Dharmesh Solanki

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गुलचमन में चलते हैं

गुलचमन में चलते हैं

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गुलचमन में चलते हैं हम भी

पाँव में है कुछ कांटे गम भी


देख दिल भी पतझड़ है मेरा

चंद फूलों पर है शबनम भी


ठोकरें लाज़िम है होनी है

ढूंढते है फिर क्यूँ मरहम भी


शाम के हर पल में यूँ अकसर

जाम थोड़े रहते है कम भी


ठहरते हो तुम भी तो ठहरो

पर निकलते सबके है दम भी।



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