रात की रौशनी
रात की रौशनी
रात की रौशनी को भूल जाना है
मुझे दिन के अब बहुत काम आना है
सभी दंगे फसादों को मिटा कर ही
खुदा को अब यहाँ वापस बुलाना है
कहीं मायूस पड़ा है बरसों से जो
उसी चेहरे को फिर जगमगाना है
खिलौना नहीं हूँ मैं जो तोड़ देगी
टूटा दिल ले के कुछ कर दिखाना है
कलाकारी तो बाद में भी दिखेगी
भूल मत ख़ुद को इंसान बनाना है
हसीं है ये राह बेहद इन सफ़र की
मुझे इन सफ़र में ही ठहर जाना है
कमानी नहीं मुझ को दौलत जहाँ में
मुझे तो बस अपना नाम कमाना है
भले शैतान हम सब को जला डाले
हमें बस अपना ईमान बचाना है।
