STORYMIRROR

Kaustubh Wadate

Abstract

3  

Kaustubh Wadate

Abstract

वक्त..

वक्त..

1 min
216

दिन आता हैं दिन जाता रहता है

हर राेज वक्त गुजरता रहता है


काेई दिनमें सपने देखता है,

काेई सपनाें काे बस गिनता है,


काेई टूटे सपनाें पर राेता है,

काेई सपनाें के लिए ही साेता है,


काैन कैसे कितना

फायदा करता हैं, ये देखने


गुजरती गली से वक्त

राेज झाँकता रहता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract