वृक्ष की अपील
वृक्ष की अपील
हमसे गुल गुलजार ,तुम्हारे अपने हैं।
मत काटो सरकार , तुम्हारे अपने हैं।
जब गर्मी में बहे पसीना,पत्ते चँवर डोलाते हैं ।
धूप का रूप सहा ना जाए,अपनी छाँव बिठाते हैं ।
फिर भी सहें प्रहार , तुम्हारे अपने हैं ।
मत काटो सरकार , तुम्हारे अपने हैं ।
मीठे-मीठे फल खाते हो,फूल से भवन सजाते हो ।
शीतलहर में सूखी लकड़ी, से तन को गरमाते हो।
लेते हो उपहार , तुम्हारे अपने हैं ।
मत काटो सरकार, तुम्हारे अपने हैं।
मेरे कारण घटा सलोनी,नील गगन पर छाती है ।
धरती की गोदी में बरखा, झूम के कजरी गाती है ।
मानों कुछ उपकार , तुम्हारे अपने हैं ।
मत काटो सरकार , तुम्हारे अपने हैं।
हम पेड़ों को मिटा के सोचो,तुम कैसे बच पाओगे ।
कुदरत की जब तनेगी भृकुटी ,खुद को कहाँ छुपाओगे ।
हमसे ही संसार , तुम्हारे अपने हैं ।
मत काटो सरकार,तुम्हारे अपने हैं।
