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Meenu Babbar

Inspirational

4  

Meenu Babbar

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वृद्ध आश्रम

वृद्ध आश्रम

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अंतःकरण तड़प उठा,

वृद्ध आश्रम का सुनकर नाम।

ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम,

वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम। 

केवल यही थे आश्रम चार। 

कलयुग की कैसी ये लीला,

कब से बना यह विधान।

कब से प्यारे मात - पिता,

बच्चों पर बन गए भार।

कैसे भूल गए हैं बच्चे,

मात पिता का अनुपम प्यार।

कैसे उर कठोर बन गया,

बुद्धि भी हो गई चट्टान।


कैसे भूल गए हो तुम,

वो रात मां का लोरी गाना।

कैसे भूल गए हो तुम,

पिता का कंधे पर सुलाना।

कैसे निर्मोही, कैसे पापी,

आज बनकर बैठे हो।

कैसे हृदय पाषाण बना,

निर्मम कितने बैरी हो।

लाज तूझे नहीं आई तब,

जब वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया।

देखभाल की आई घड़ी जब,

मुंह कैसे तूने मोड़ लिया।


याद करो वो सुन्दर पल,

जब मां ने गोद उठाया था।

भूल कर अपनी पीड़ा मां ने,

हर सुख तुझ में ही पाया था।

याद करो उस मीठे पल को,

जब पिता ने गले लगाया था।

धूप छांव की बिना फ़िक्र ही,

तेरा बोझ तेरा उठाया था।

हर अपने सुख का त्याग किया,

वह सत्य प्रेम था, निस्वार्थ बड़ा।

क्या खूब मोल चुकाया है,

वृद्ध आश्रम ही उपहार दिया।

जिस नाज़ुक उम्र के अधिष्ठान पर,

सेवा का सुख वह चाहते हैं।

वहीं पलों विष बनाया,

क्या यही फल वह चाहते हैं।

   

अपने माता पिता की सेवा को अपना कर्तव्य समझना, बोझ नहीं।

मात पिता के प्रेम का कोई मोल नहीं।

        


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