वो
वो


उसकी आँखों में एक सवाल सा
देखा था
कुछ न कर पाने का मलाल देखा था
लुट गयी थी वो सरे बाजार में
और उन दरिंदों को खुश हाल
देखा था
एक झूठी सी हँसी थी
पूरे घर में उदासी थी
हर किसी की नज़रे गिरी हुई थी
आखिर वो भी तो किसी पापा की
परी थी
गुज़री जो वो अपनी गली से
एक धीमा सा शोर हो रहा था
कोई ग़लती नहीं थी उसकी
फिर क्यूँ हर कोई उस पे ही
सवाल खड़े कर रहा था
वो आँखों में सवाल लिए
पूछ रही थी हर उन घूरती
नज़रों से
क्या हक़ है तुम्हें इलज़ाम
लगाने का
जब
अपनी बेटी के लिए लड़ ही
नहीं पाए उन हैवानों से
उन घूरती नज़रों के लिए एक
जवाब भी था
आखिर तुम्हारी भी तो कोई
परी होगी
कैसे बचाओगे उसे इन दरिंदों से
कैसे बचाओगे उसे इस नज़रों से
कैसे दोगे उनके सवालों के जवाब
आज भी वक़्त है संभल जाओ
किसी और की बेटी पे इलज़ाम
ना लगाओ
नहीं तो कल फिर यही सवाल होगा
और तुम्हें भी कुछ ना कर पाने का
मलाल होगा
बेटी किसी की भी हो इलज़ाम मत
लगाया करो
नहीं तो वो वक़्त दूर नहीं होगा की
कोई तुम पे भी इलज़ाम लगा जायेगा