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Sherry ...

Romance

4.3  

Sherry ...

Romance

वो पल

वो पल

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गिरा एक पल जो तुम्हारी गिरेह से

मेरे साथ कुछ वो ठहर सा गया है

कहाँ रहती हैं अब परछाइयाँ संग

जो चलने की ज़िद संग करने लगा है।


जो खाली मैं बैठूँ तो आँखों में अटके

तरह तरह के रंग भरने लगा है

जहाँ बच गए हो सपने सलामत

उसी जद पे आके जड़ हो गया है।


जो दिन की रफ्तार हो कुछ ज़्यादा

घड़ी दर घड़ी दिल को छलने लगा है

जहाँ मिल रहे हो,रास्तों के किनारे

घरौंदों को ऐसे वो तकने लगा है।


उतारा उसे तो खिड़की पे जा बैठा

सूरज के संग-संग चलने लगा है,

कहाँ मिलते हैं ये ज़मीं आसमाँ पर

न जाने क्या संग साथ तय कर रहा है।


गिरा एक पल जो तुम्हारी गिरेह से

मेरे साथ कुछ वो ठहर सा गया है

जहाँ ना ज़मीरों की पाबन्दियाँ हो

दीवाना उसी राह पे चल पड़ा है।।


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