वो जब रात को आता है
वो जब रात को आता है
अंधेरे में चलता है बेखौफ सा
दिन के उजाले में जाने कहां जाता है
जब सन्नाटा बाहें फैलाता है
और हर चेहरा काला नज़र आता है
वो जब रात को आता है !
सड़कें खाली खाली सी लगती हैं
दिल में एक डर घर कर जाता है
जो चलता है सीधी राह पर दिनभर
रात को अपना आपा खो जाता है
दिलो-दिमाग पर एक सुरुर सा छा जाता है
वो जब रात को आता है !
करता है गुनाह खामोश गलियों में
चीखें दब जाती हैं रहम किसी पे ना आता है
चरम सीमा पर हैवानियत होती है
एक फितूर सा दिमाग पर छा जाता है
वो जब रात को आता है !
बचना है अगर उससे रात के अंधेरे में
तो खुद को ही बदलना होगा
क्यूंकि अपनी मांगे पूरी करवाने की खातिर
वो हर रात पीछा करता जाता है।
कुछ ना कर पाएगा कोई भी
बस इंसान हैवान बनता जाता है
खोकर वजूद अपना
एक दरिंदा बनकर रह जाता है।
वो जब रात को आता है
वो जब रात को आता है !