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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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वो गुजरे हुए पल

वो गुजरे हुए पल

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बहुत याद आते हैं

कभी हँसाते तो कभी रुलाते हैं,

कभी गुदगुदाते याद आते हैं।

पापा के साथ बाजार जाना

पापा के गुस्से से बचने के लिए

बाबा की आड़ में छुप जाना

माँ से न खाने को नखरे दिखाना

बहन की चुटिया खींचकर चिढ़ाना

छोटे भाई की मिठाई छीनकर खाना

भाई बहनों पर

बड़े होने का रौब जमाना

बुआ की गोद में बैठ निर्भय हो जाना

बहुत याद आते हैं ,

स्मृतियों में रुलाते हैं।

अब वे पल जैसे कल्पनाएं हैं

आज के इस जमाने में

महज विडम्बनाएं हैं,

पर हमनें जिया है उन पलों को

तभी तो याद आते हैं,

कभी सताते तो कभी बेचैन करते

सांत्वना देते, ढांढस बँधाते

वो गुजरे हुए पल याद आते हैं,

भूलना चाहें भी तो भुलाए नहीं जाते।

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