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Prem Bajaj

Abstract

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Prem Bajaj

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वो दिन

वो दिन

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ज़ख़्मे-जिगर ना देखो हमारा, आपकी आरज़ू को अपना ख़्वाब बना लिया।

अपने दिल के हर इक पन्ने को आपकी यादो की किताब बना लिया।


उम्मीद पे आपकी इक जहाँ बसाया है, आप आओ या ना आओ, हमें तो हर साँस ये लगता है जैसे आप का पैगा़म आया है।


जब मरने लगे हम तो आपने याद फ़रमाया है, हमने भी मोहब्बत निभाने का क्या ईनाम पाया है।


पूछते है लोग कि शायर क्यो बन गए, हादसे इतने हुए इस दिल के साथ कि हाथों मे कागज़-कलम पकड़ लिए।


आँखें बँद करके उन पे यकीन करते रहे, और वो बेवफ़ा, गै़र के पहलु मे रह कर हमे छलते रहे ।


इतना कमज़ोर दिल था मेरा, आपकी बेवफ़ाई ने शगुफ़ा बना दिया, इस तरह छलते रहे हमे वो कि ख़बर भी ना हुई, और हमने अपना सब कुछ गवाँ दिया।


अब सोचते है कि काश हम भी सीख लेते बेरूखी करना, हर इक को मोहब्बत देते-देते हमने अपने अपना आप गवाँ दिया।


कभी तो वो दिन भी आएगा, जब आपको हम ही नहीं हमारा प्यार भी याद आएगा।


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