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Abhyas Classes

Tragedy Others

4.9  

Abhyas Classes

Tragedy Others

वो बूढ़ी माँ

वो बूढ़ी माँ

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वो वृद्धाश्रम के

एक कोने में पड़ी चारपाई ।

उसमें सिसक रही,

न जाने किसकी माई ।।


दूर रखे टेलीफोन को,

निहार रही है माँ ।

रोज़ शाम को फोन करूँगा,

बोल कर गया था बेटा ।।


उसके दोनों हाथों की,

सिलाई आपस में लड़ रही है ।

पोते को स्वेटर दूँगी,

बहुत सर्दी पड़ रही है ।।


मैदा ले आई माँ,

गुजिया बेटे को भाती है ।

चाव से खायेगा,

बहु मुझ जैसी न बनाती है ।।


लो आ गई होली,

रंगो से सराबोर है दुनिया ।

आंसुओं की होली,

बेरंगी रह गई वो बुढ़िया ।।


उफ़ आई गर्मी,

बेटा मिलने आओ न ।

लू से बचाए जो,

वो आम पना पी जाओ न ।।


बारिश का दौर,

घर पर टपकता था पानी ।

बहु ने क्या रखे होंगे,

बर्तन, बैटरी में डल जाता ये पानी। 


दीवाली आ गई,

पांच दीये घी के जरूर जलाना ।

गोवर्धन पर भोग,

कड़ी बाजरा के साथ जिमाना ।।


फिर ये ठण्ड आ गई ।

पिछले साल का स्वेटर यूँ ही रखा है ।

पोता तो बड़ा हो गया होगा ।

अब स्वेटर किस काम का रहा है ।।


ऐसे ही क्या हर,

साल बीत जायेगा, सोचती हूँ ।

बेटा मेरा कहाँ है,

मुझे कब ले जायेगा, सोचती हूँ ।।


माँ अब तुम यहाँ से चलो,

दूसरे आश्रम, सेवक की आवाज ।

ना मैं यहाँ से कहीं न जाऊंगी,

बेटा मेरा लेने आएगा, पूरा है विश्वास ।।



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