वो भयानक रात
वो भयानक रात
11 जून 1990 की थी वो भयानक रात
आज सुनाता हूं उस रात की दर्दनाक बात
गिरिजा टिक्कू उस समय 20 साल की थी
बहुत सुंदर कश्मीरी पंडित थी, कमाल की थी
श्रीनगर विश्वविद्यालय में एक लाइब्रेरियन थी
आतंकवादियों, जेहादियों के निशाने पर थी
अराजकता, बर्बरता के दौर में घाटी छोड़ गई
हवस के भूखे भेड़ियों का वह दिल तोड़ गई
उसके एक साथी ने एक षड़यंत्र तैयार किया
बकाया वेतन लेने के बहाने से उसे बुला लिया
जैसे ही वह वेतन लेकर बस में सवार हुई
5 जेहादियों के हाथों उसकी इज्जत तार तार हुई
इनमें एक गिरिजा टिक्कू का वह साथी भी था
मजहबी रंग में रंगा वह सियार विश्वासघाती भी था
पांचों आतंकविदयो ने सामूहिक दुष्कर्म किया
उसके नग्न शरीर का सार्वजनिक प्रदर्शन किया
पूरे बदन को नोच खसोंट कर लहूलुहान कर दिया
अपने मजहब का उन दरिंदों ने रोशन नाम कर दिया
पर इतनी दरिंदगी से भी उनका पेट नहीं भरा था
"काफिरों" को सबक सिखाने का उनमें जहर भरा था
उसके नग्न शरीर को आरामशीन पर ले जाया गया
जिंदा गिरिजा टिक्कू को आरामशीन से चिरवाया गया
उस भयानक दृश्य को देखकर वह रात भी थर्रा गई
"दीन" वालों की नृशंसता देखकर बर्बरता भी घबरा गई
उस भयानक रात को कोई कैसे भूल सकता है
इंसानियत पर लगा कलंक कैसे मिट सकता है
ऐसी ही घटना फिर से सरला भट्ट के साथ घटी थी
उसकी लाश आरामशीन से नहीं कुल्हाड़ी से कटी थी
पंडितों के साथ जो हुआ उससे भयानक और क्या होगा
इसे प्रोपेगैंडा बताने वालों के साथ भी क्या ऐसा ही होगा
मजहबी उन्मादियों को क्या कोई सजा मिल पायेगी
क्या उस भयानक रात की सच्चाई कभी बताई जायेगी ?
