"वो अधूरी प्रेम कहानी"
"वो अधूरी प्रेम कहानी"
बात उन दिनो की है, जब देश आजाद भी नही हुआ था। देश पर अंग्रेजों का शासन था। देश के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देश को आजाद कराने के लिए प्रयासरत थे। उस समय उन सभी चीजो से ब्रेफिक भोपाल की गलियो में कर्ई छोटे छोटे बच्चे आपस में खेला करते थे। जिसमें सभी जातियों और धर्मो के बच्चे थे। वे जात- पात, धर्म आदि से अन्जान थे। वो तो सिर्फ दोस्ती, प्रेम, रुठना, मनाना, हँसी, खुशी ही जानते थे। उन बच्चो के परिवारों में भी गहरा भाईचारा था। बच्चे आपस में इतना घुले मिले थे। कि अगर कोई बच्चा उनमें से अपने रिश्तेदार के यहाँ चला जाता था तो दूसरे बच्चे उसके बिना रह नही पाते थे। सभी परिवार भी आपस में एक दूसरे की खुशी और गम में शामिल होते थे।
धीरे - धीरे वो बच्चे किशोरावस्था में आने लगे थे। जिनमें एक रुबीना और एक दिलजीत सिंह था। इन दोनो के बीच आपस में कब आकर्षक बढ़ा ये खुद भी न जान पाए, जब इन दोनो के बीच प्रेम संबंध बढ़ ही रहे थे। तभी पूरे देश में दंगे होने लगे। जिससे भोपाल भी अछूता न था।
दंगो और देश के बँटवारे की माँग से दोनो के परिवारो में दूरियाँ आ गई। जो दोनो परिवार एक समय, एक दूसरे की खुशियों में शामिल होते थे। वे अब एक दूसरे को देखना भी पसंद नही करते थे।
देश के विभाजन के साथ ही रुबीना का परिवार पूर्वी पाकिस्तान में जा बसा था। इधर दिलजीत भी परिवार के दबाव में रुबीना को भूल चुका था, पर दिल से नही निकाल पाया था। उधर रुबीना की भी शादी हो गई थी। इधर दिलजीत को सेना में नौकरी मिल गई थी। समय बीतता गया। दिलजीत की पत्नी का चेचक की बीमारी से देहांत हो गया था। दो बच्चो को पालने के लिए दिलजीत को नौकरी तो करनी ही थी।
सन 1971 को पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचार से पाकिस्तानी शरणार्थियों का भारत में आगमन होने लगा। जिस कारण भारत को पाकिस्तान पर आक्रमण करना पड़ा। पाकिस्तान पर आक्रमण करने वाली सेना में दिलजीत भी शामिल था। जब सेना पूर्वी पाकिस्तान के चटगाँव शहर में वहाँ के पीड़ित लोगो को राहत सामग्री दे रही थी, तो दिलजीत भी राहत सामग्री बाटने में शामिल था। जब दिलजीत राहत सामग्री बाँट रहा था तभी उसी लाइन में रुबीना भी लगी हुई थी। रुबीना जब लाइन में लगी थी। तो वो दूर से ही दिलजीत को पहचान ली थी। रुबीना अब अपना सब कुछ खो चुकी थी। उसके पति और बच्चो की पाकिस्तानी सैनिकों ने हत्या कर दी थी। उसका घर बार सब लूट लिया गया था। अब उसके पास कुछ भी नही था।
रुबीना कपड़े से अपना मुँह ढकने का प्रयास कर रही कि कँही दिलजीत उसे पहचान न ले। जैसे ही रुबीना की बारी आई, वैसे ही वह अपना चेहरा लगातार ढकने का प्रयास कर रही थी और अपने दाँतो से कपड़े को दबाए जा रही थी।
जैसे ही दिलजीत के दिए गये राहत सामान को उसने अपने हाथो से पकड़ा। वैसे ही उसके दाँतो की पकड़ कमजोर हुई और उसका ढका चेहरा खुल गया। रुबीना के चेहरो को देखते ही दिलजीत हक्का बक्का रह गया। वो लगातार रुबीना को ही देखता जा रहा था। वो उस चेहरे को कैसे भूल सकता था ? जिसके साथ वो बैठकर अपने शादीशुदा जीवन के भविष्य संजोता था। रुबीना भी अब दिलजीत की नजरो से अपनी नजर नही हटा पा रही थी। और दिलजीत की तरफ देखकर वह फूँट फूँट कर रोने लगी।
दोनो के बीच वो पुराना प्यार फिर पनप उठा। और दोनो वही पर एक दूसरे को अपनी बाँहों में जकड़ लिए। दोनो ही आपस में एक दूसरे को देख देख कर रोने लगे। काफी देर तक दोनो अपने अतीत को याद करने के बाद अपने आप को संभाले तो दोनो ने अपनी अपनी आप बीती एक दूसरे को बताई। दोनो ही एक दूसरे की आप बीती से परिचित हो चुके थे।
दिलजीत रुबीना से बोला कि रूबीना देखो अब तुम्हारा है कोई नही अब यहाँ तुम्हारा कुछ भी नही है। क्यो न मेरे साथ तुम भोपाल चलो और मेरे ही साथ रहो मेरे बच्चो को भी अच्छा लगेगा।
पहले तो रुबीना सकपकाई फिर काफी मनाने पर वह किसी तरह मानी और वो दिलजीत के साथ भोपाल आई।
रुबीना जैसे ही भोपाल की उन गलियो में दिलजीत के साथ 25 साल बाद घुसी। उसकी आँखो के सामने वो पुराने दिन आ गये। जब वो सब बच्चों के साथ खेला करती थी। उसकी खुशी का जैसे कोई ठीकाना न था। दिलजीत के बच्चो को देखकर उसे अपने बच्चो की याद आ गई। दिलजीत के मिलने से उसे ऐसा लगा, जैसे उसे सारी खोई चीजे मिल गई हो। इस तरह एक अधूरी प्रेम कहानी का मिलन हुआ।

