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वो अधूरा इश्क

वो अधूरा इश्क

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पन्नों पे लिखे अक्षरों सा था ना वो सब,

कितना हसीन लेकिन कमज़ोर था ना वो सब।

पात ही ना चला और स्याही फैल गई,

तुम पहली बारिश मैं ही कहानी अधूरी छोड़ गई।


इस सफ़र की कुछ आखरी पटरियाँ इस तरह बिखरी

ना पुल बांध सका मैं और देखते देखते बाढ़ आ गई।

पीछे बैठ थाम जो रखा था तुने मुझे हर राह पर याद मत करना

अब वो रास्ते, जहाँ तेरी मेरी बातें थी बड़ों की जुबान पर।


तुम कह जो गए कि, समझता नहीं मैं तुम्हें,

क्या कभी कोशिश भी थी तुमारी,

मेरी तराफ़ दे इक एक दफा जान लेने कि मुझे।

कितने दफे तो आरुष न ठोकर खाय थी,

तेरी आवाज न सुने मैंने अपनी हर रात की सरगम बनाई थी।

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तुम तो वक्त से भी तेज निकले,

ना रूके कभी मेरे लिए, ना वापस आए कभी मुडके मेरे लिए।

दस्तक देती घड़ी की सुइयां भी हर घंटे में लोट तो आती है अपनी जगह,

तू तो हुल हाय गइ जाईस माई थोई बेसमस बरसत की तरह


अब क्या याद रखोगे तूम मेरी इबादत को,

इस फिजूल से ज़माने की आड़ में छुपा जो लिया था तूने मुझको।

मैं भी पागल फकीर ही तो था,

 पढ़ रहा था तेरे लिए मन्दिरों में पांच बारी नमाज जो।

कुछ बाते बेजुबान ही होती है,

कुछ यादें जेहन में ही अच्छी होती है।


उसके जाने के डर में बदला तो नहीं था,

लेकिन अब उसके वापस आने से मैं डरता जरूर था।


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