वो आ ही जाती हैं
वो आ ही जाती हैं
वो आ ही जाती हैं।
हरपल मेरे ख्वाबों में
बेचैनी ही छा जाती हैं।
तनहा सफ़र में आंख मूंदकर
जब मेरी नजरे उससे मिलती हैं।
बैठा रहता हूं मैं
बस उसके ही बारे में सोचता हूं
कितनी मरती हैं वो मुझपर
उनकी यादें बार- बार सताती हैं।
कितना समझाऊं मैं,
कहां जाऊं मैं
वो तो बार- बार आती हैं
रब जाने कितना लगाव होगा मुझसे
जिस जगह पर रहता हूं
बस वहीं आती हैं
जो मुझे अपने दिल की बातें बताती थी,
जब गहरी नींद में सोते थे
वो आकर मुझे जगाती थी।
दिखता हैं मेरे नजरों में
उनका ही चेहरा
कभी- कभी दिल कहता हैं ,
किसी दिन बांध लूं मैं, उनके नाम का सेहरा
बस वो बंद कर दें
मेरे ख्वाबों में आना
आना हो तो वो आए,
मेरे सम्मुख आ जाए
लेकिन ऐसे न मुझे सताए
बड़ी तड़प होती हैं।
उनसे दूर रहकर
इसलिए वो आती हैं
कितना बताऊं मैं उसको
कि तुम बार- बार न आ दोस्त
वो तो मानती नहीं, चली आती हैं।
उलझन में पड़ जाते हैं हम
मन भी नहीं लगता हैं
अरे! वो क्या किस्से ,
सुनाने पहुंच जाती हैं।
मुझे पता नहीं चलता हैं,
वो कैसे पहुंच जाती हैं
कितनी नादान हैं वो,
कुछ समझती नहीं बावरी
गुनगुनाती हुई,
गाती हुई आती हैं।
मेरा पागल दिल कहता हैं
बस उसके ही पास चला जाऊं
जहां वो रहती हैं।
कुछ कम तो हो जाएगा,
रुलाना उसे
जो अपनी मुस्कानों से,
ख्वाबों में कत्ल करती हैं।
बहुत याद आती हैं उसकी
मैं दिल थाम ही लेता हूं
मैं जहां रहता हूं, उसके ख्वाबों में डूब जाता हूं।
सामने आती नहीं वो,
बस ख्वाबों में ही तड़पाती हैं।।