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Nisha chadha

Abstract

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Nisha chadha

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वक्त

वक्त

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बहुत शिकायत थी, सबको वक्त से,

वक्त की रफ्तार से,

समय ही नही मिलता,

अपनों के लिए, सपनों के लिए,

परिवार और बच्चों के लिए,

हम किस तरह छुट्टी का,

इंतजार किया करते थे,

आज जब घर में रहने का मौका मिला,

तो मन नहीं लग रहा,

वक्त मिले तो घर सजायेगें

नई नई डिश बनायेंगे,

अपनी छोटी सी वाटिका में बैठ कर,

काॅफी का सिप लेंगे ,

चहकती चिड़ियों और महकते, फूलों से मिलेगें,

दोस्तों से बतियायेगें,

आज जब वक्त मिला तो,

यूं ही जाया किये जा रहे हैं,

क्यों इतना सोच रहे हो,

मुस्कुराने, गुनगुनाने में,

अपने शौक पूरे कीजिए,

वक्त ने अपनी रफ्तार कम कर दी है ।



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