वक्त
वक्त
बहुत भाग लिए
अब घर की दीवारों से रूबरू
होने का वक्त आया है।
बहुत मिल-मिला लिए दुनिया से।
अब अपनों को अपना समय देने का वक्त आया है।
किस्तों में जिंदगी जी ली बहुत।
अब किस्तें चुकाने का वक्त आया है।
कठपुतली बने हुए थे जो वक्त के सभी
खुद के ताल पर थिरकने का वक्त आया है।
धूल जम गई थी जो वक्त कि कहीं
नई धुन बनाने का वक्त आया है।
आंखों में सजाए थे जो सपने हजार
अब आंखों से देखने का वक्त आया है।
प्रदूषण जो फैलाया है बेहिसाब
अब राहत देने का वक्त आया है।