विष्णुपदी छंद....
विष्णुपदी छंद....
16/10,कुल 26 मात्रा,पदांत 2
कल-कल करती बहती जाती,नदिया की धारा।
तारण करती जन-मन को यह,देती सुख सारा ।।
कल-कल करती बहती जाती.....
सत्य पथी यह निर्झर बहती,सुर नाद सदा हो।
रज-रज पाहन चल संग लिए,सम प्रियंवदा हो ।।
सुहद सुता सी समरस गाथा,हो आनंदी की ।
पय कण का अपमान करे तब,हो निंद्य बदी की ।
कष्ट सभी जल रज ही हरती,ज्यों औषध पारा...
कल-कल करती बहती जाती.....
किससे कह दूॅं भाव रुदन को,सबके मन कटुता ।
कौन बड़ा अरु कैसा छोटा,हिय में जब लघुता ।।
साथ सभी तुम हिलमिल चलिए,नभ में बन तारा ।
ऑंसू में भी दर्द छुपे हैं जी,मीठा या खारा ।।
गंगा मृत तन को भी धरती,है आज हमारा...
कल-कल करती बहती जाती..।