विरह... (कुंडलिया छंद)
विरह... (कुंडलिया छंद)
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मन तेरा कुछ बावरा, तन तेरा बेचैन।
पिया गए परदेश हैं, काटे कटे न रैन।
काटे कटे न रैन, रजाई रोक न पाए।
बर्फीली है हवा, ठंड से सिकुड़ा जाएI
भेज उसे संदेश, लौट के आजा साजन।
भय लागे ना कहीं, डोल जाए मेरा मन।।