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Pramod Binyala

Romance

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Pramod Binyala

Romance

विरह... (कुंडलिया छंद)

विरह... (कुंडलिया छंद)

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मन तेरा कुछ बावरा, तन तेरा बेचैन।

पिया गए परदेश हैं, काटे कटे न रैन।


काटे कटे न रैन, रजाई रोक न पाए।

बर्फीली है हवा, ठंड से सिकुड़ा जाएI


भेज उसे संदेश, लौट के आजा साजन।

भय लागे ना कहीं, डोल जाए मेरा मन।।


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