एक और नववर्ष
एक और नववर्ष
साल आते हैं गुजर जाते हैं
लोग मिलते हैं बिछड़ जाते हैं
जो असरदार हों गहराई में
लम्हे वो जेहन में रुक जाते हैं
एक गुलदस्ता लिए हाथों में
कोई बुलाये तो पहुँच जाते हैं
मुस्कुराना है ये अदा अपनी
नहीं कहते मगर कह जाते हैं
बात अच्छी हो लिख जाते हैं
महफ़िलों में नहीं हम जाते हैं।
