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GOPAL RAM DANSENA

Abstract

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GOPAL RAM DANSENA

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वह परछाई मर गया

वह परछाई मर गया

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मैंने उसके संग संग हमेशा पाया

एक धुंधली काली साया।

कभी वह सिमटता

कभी वह लिपटता


सुबह से शाम तक

वह अठखेली कर न अघाया

एक धुंधली काली साया।


साथ न छोड़ा गम में

जब अपने भी दूर हो गए

हमेशा स्पर्श किया

जब रोए साथ रो गये

कभी आगे कभी पीछे

उसने हमेशा साथ निभाया

एक धुंधली काली साया


आज मजबूर हो सब

साथ छोड़ रहे हैं जब

न भरमाया न शर्माया

परछाई तनिक न डगमगाया

एक धुंधली काली साया


अपने कोमलता का सेज बना कर

आज बन गया एक ऐसी हमसफ़र

जो अपना अस्तित्व कुर्बान कर गया

चिता में एक परछाई बेजान मर गया

वह परछाई मर गया, वह परछाई मर गया।


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