वह माँ ही है
वह माँ ही है
अपनी साँसों से जिसने सींचा हमारी साँसों को,
वह माँ ही है
नौ महीने गर्भ में रखकर इस दुनिया में जो लाया,
वह माँ ही है।
जिसने खुद पीड़ा सही चाहे प्रसव की ,या स्तन की,
वह माँ ही है
हर पीड़ा में जिसने आनंद अनुभव किया, व्यख्त किया,
वह माँ ही है।
जिसके वक्ष स्थल के साये मे हम पल पल आगे बढ़ते गए,
वह माँ ही है
धूप हो या हो ठंडी हवाएं , आँचल जिसका आश्रय था,
वह माँ ही है।
जिसका आँचल पकड़कर हमने चलना सीखा, सीखा बोलना,
वह माँ ही है
जो त्यागती है अपना सर्वस्व हमारे सुख की खातिर,
वह माँ ही है।
हमारी ख़ुशी से जिसकी ख़ुशी हुई दुगनी, तिगनी, हुई अपार,
वह माँ ही है
हमारी एक छोटी आह पर दिल जिसका हाहाकार करे,
वह माँ ही है।
जिसकी झोली उठे हर मज़ार,
हर मंदिर में हमारे सुख की कामना के लिए ,
वह माँ ही है
हम पल पल आगे बढ़ते रहते,
जो उम्र पीछे है छोड़ती जाती,
वह माँ ही है।
जब बहके या लुढ़के हम,
आँचल जिसने अपना थमा दिया,
वह माँ ही है
एक एक सफलता पर हमारे जिसने हर्षो-उल्ल्हास मनाया,
वह माँ ही है।
नज़र न लगे किसी की, टोटके करती रहती थी हज़ार,
वह माँ ही है
अपना निवाला कम करके, चुपके से वह हमारी थाली भरना,
वह माँ ही है।
पिता को झूठे बहाने देकर, हमारी गलतियों को थोड़ा छुपाना,
वह माँ ही है
बच्चों की कामयाबी पर जिसकी छाती होती है चौड़ी,
वह माँ ही है।
हम बढ़ते है आगेअपने परिवार के संघ, रहता है जिसको इंतज़ार ,
वह माँ ही है
कभी कभी जो बँट भी जाती है मजबूर होकर , असहाय होकर ,
वह माँ ही है।
वक्त और परिसिथितियाँ जिसको झुकाती हैं, या थकाती,
वह माँ ही है
लम्बा सफर सुख दुःख का काटते - काटते कभी उफ़ न करती,
वह माँ ही है।
माँ जन्मदायिनी है हमारी, हमारी पहचान कुछ नहीं,
बस उसकी धड़कन है
वह बरगद की छाँव है, है गंगा की धारा, वह कलाइयों पर ,
एक सुन्दर कंगन है।
सृष्टि के हर रूप में, कर कोने में " माँ" शब्द
अमृत पावन है
जो हर गुनाह मुआफ कर दे, निश्छल प्रेम बरसाए,
वह सिर्फ माँ का मन है।
जिसकी सूरत में, सीरत में, कोई और न बसता सिर्फ
खुद भगवन है
कुर्बानियों की मिसाल है,
है सहनशीलता का एक विशाल स्वरुप
उस माँ को मेरा शत शत नमन है।
