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Rajeev Rawat

Inspirational

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Rajeev Rawat

Inspirational

वह भी एक औरत थी

वह भी एक औरत थी

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जिस की कोख में

नौ माह तक अंकुरित होकर

इस जीवन का पहला पाठ पढ़े थे-

जिसकी बांहों की ऊष्मा में,

और स्तन की जीवन धारा से तुम तपे थे-

जिस वट वृक्ष की

निर्मल छाया में तुम खोये थे-

जिसके सीने की गद्दी पर बिना डरे तुम सोये थे--

जो खुद

भूखी रह कर क्षुधा तुम्हारी रही मिटाती

जो तुम्हें सुलाने के बाद न जानें कब सो आती -

वो जो

तुम्हारी एक आह पर डर जाती-

तुम्हें दर्द में देख जो जीते जी मर जाती-

वह आंखें

तुम्हारी मुस्कान

देख कर मुस्करातीं थी-

और तुमको रोता देख स्वयं समुंदर बन जातीं थी--

जो हर मौसम की

मार से हर पल तुम्हें रही बचाती-

हर कठिनाई पर अपने तन को दीवारी सी रही बनाती-

वो जो

तुम्हारे जन्म से अपने मरण तक सपनों के धागे बुनती थी-

धुंधली आँखों से राह के कांटे चुनती थी-

जो प्यार का बोसा लेकर

सोते हुए भी तेरे पेशानी पर झुक जाती थी-

अपनी कांपती

उंगलियों से बालों को सहलाती थी-

जब तक

श्वासों साथ थी उसकी

देकर जीवन की हर खुशी तुम्हें

खुद माटी की मूरत थी-

अरे! मां के रूप में

जीवन में सर्वस्व लुटाती वह भी एक औरत थी-             

                           


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