वाह रे जिदंगी
वाह रे जिदंगी
वाह रे जिंदगी,
तुझसे मैं क्या शिकायत करूँ,
इतने ग़म के झमेले को मैं,
कब तक झेलती रहूं
अजीब सी खामोश निगाहें,
देख दिल थर-थर कांपता है,
किस निगाह पर करूं विश्वास
कब तक यूं कांपती रहूं
सोचती हूं कभी कभी मैं,
क्या इतने बुरे कर्म किये मैंने,
जो जिंदगी मुझे उलझा रही
कब तक यूं सोचती रहूं
तमस की गुहा में खो गई मैं,
मैं परिणिता परिवार की धुरी भी,
पर किसने मुझे समझा ही नहीं तो
कब तक यूं सहती रहूं
बहुत सह लिया मैंने ये जिंदगी तुझे,
अब तो खुशी के पल कुछ उधार दे दे,
प्यार के पल तो अब गिरवी हो गये,
कब तक यूं घुटती रहूं।