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Anita Sharma

Abstract Tragedy Fantasy

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Anita Sharma

Abstract Tragedy Fantasy

ऊँच नींच

ऊँच नींच

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नफरत का बाजार वो चलाता रहा

ऊँच नींच का पलड़ा सजाता रहा,

पालकर जिनको तहज़ीब सिखाता रहा

बनकर मालिक इशारों पर नचाता रहा।


आज वो ही शर्मिंदा है कृत्य पर अपने

जीतकर भी हार गया आखिर सारे सपने,

आज नतमस्तक हुआ प्रकृति के बवाल पर

वो जो गुरूर में खुलकर जश्न मनाता रहा।


भागता बदहवास सा किस तलाश में

पाता है खुद को मजबूर है हताशा में,

अब कैसे संभले कहाँ खुशियां मनाये

आज़ादी की बाट जोहता बैठा बंदिशों में।


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