उत्कृष्ट-भारतीय संस्कृति
उत्कृष्ट-भारतीय संस्कृति
आज विषाणु-कोरोना वाला, अखिल विश्व को दे रहा है सारे ठोस प्रमाण,
विश्व-बन्धुता भावों वाले विश्वगुरु की, परम्पराओं में है निहित जग कल्याण।
खानपान-पहनावा-आचरण हर, संस्कृति का अपना परिचय होता है,
दीर्घकालीन प्रेक्षण आधारित विचारकों के, अनुभवों से पैदा होता है।
देश-काल -परिस्थितियों के संग,सतत्-क्रमिक-धीमा परिवर्तन होता है,
जीतते जो अनुकूलित होते, मन-मर्जी करने वाला शीश पकड़कर रोता है।
कुछ निर्णय तो नहीं बदले जा नहीं सकते, ज्यों धनुष से छूटा कोई वाण,
आज विषाणु-कोरोना वाला, अखिल विश्व को दे रहा है सारे ठोस प्रमाण,
विश्व-वंधुता भावों वाले विश्वगुरु की, परम्पराओं में है निहित जग कल्याण।
बड़ी दूर से ही हाथ-जोड़कर सबसे -सबका,निज संस्कृति में अभिवादन हो जाता है,
शुभता को दशदिश फैलाकर, भौतिक व वैचारिक प्रदूषण जड़वत ही हो जाता है।
जैसी जिसकी सोच और क्षमता उतना,सीख-समझकर रखता है और फैलाता है,
करता ग्रहण प्रशंसा करता बुद्धि की क्षमता भर, कोई आलोचना में ही जुट जाता है।
कुछ के मन को अच्छा तो लगता है, पर प्रशंसा करने में निकलते हैं उसके अपने प्राण।
आज विषाणु-कोरोना वाला, अखिल विश्व को दे रहा है सारे ठोस प्रमाण,
विश्व-वंधुता भावों वाले विश्वगुरु की, परम्पराओं में है निहित जग कल्याण।
आज अखिल विश्व अति भयाक्रांत है,इस विषाणु ने विपदा कुछ ऐसी है पसारी,
घोषित" विश्व स्वास्थ्य संगठन" ने संक्रमण को,कर किया है विश्व व्यापक महामारी।
शाकाहारी-सात्विक भोजन और सद्वृत्ति अपनाएं, आचरण करें सदा सर्व शुभकारी,
सामाजिक नियम अपनाना है जरूरी,एच.आई.वी.संक्रमण बचाव में जा चुकी विचारी।
अंतिम सत्य मृत्यु -दर्शन से पहले, जग सेवा कर देना है हमको जग में आने का प्रमाण।
आज विषाणु-कोरोना वाला,अखिल विश्व को दे रहा है सारे ठोस प्रमाण,
विश्व -वंधुता भावों वाले विश्वगुरु की, परम्पराओं में है निहित जग कल्याण।