उसका जूनून
उसका जूनून
उसका जूनून
एक था थापा
जिसकी आँखों में जवानी का नूर था,
झुर्रियों में बुढ़ापे की थी झलक,
कई वर्षों से थी उसे एक सनक,
एक दिन आसमान जितने ऊँचे उन पर्वतों पर जाऊं,
अपने वतन का हिंदुस्तान का तिरंगा वहां लहराऊँ,
लोग कहते थे क्या सठिया गए हो
क्या बेसिर पैर की कहते हो,
इस उम्र में लो सुबह-शाम बस राम का नाम,
करो पूरे मन से राधे-शाम,राधे-शाम।
थापा नहीं सुनता किसी की उस पर था जनून सवार,
जाए वो उन ऊँचे पर्वतों के पार,
जिस जुनून के लिए वो छोड़ सकता था अपना परिवार अपना घर-संसार,
बच्चे उसके जवान होकर घर परिवारवाले हो गए,
समझा- समझा कर थापा को थे परेशान हो गए पर नहीं
लोगों ने देखा था थापा रोज़ सर उठा कर,
देख कर पर्वतों की ओर हँसता था भरपूर,
औऱ बतियाता था ऊँगली उठाकर
एक दिन चढ़ जाऊँगा पर्वतराज के ऊपर,
लहराऊंगा तिरंगा नाज़ करेगी दुनिया उसपर,
लोग सोचते थे कि गई है बूढ़े की खिसक ,
इस उम्र ऐसे जूनून को कहते हैं सनक,
वो उसको कहते दादा क्यों करते हो हमसे मज़ाक।
पर एक दिन सचमुच गजब हो गया,
थापा गावं से गायब हो गया,
पूरा गावं दंग औऱ सुन्न हो गया,
लोग आपस में कहने लगे ये क्या हो गया
थापा किधर कहाँ खो गया,
सर उठाकर देखा सबने तो एक बूढ़ा पर्वत पर
चढ़ रहा था,
चलता रहा चलता रहा थापा कई दिन पर फिर कहीं खो गया,
लोगों ने बताया वो तो अमर हो गया ,
पर थापा के पोते-पोती आज भी ये कहते हैं,
उनके दादा ऊँचे पर्वतों के बीच में रहते हैं,
कौन बताये उनको कि उनके दादा को
लग गयी थी बुढ़ापे कि सनक,
एक था थापा जिसकी आँखों में जवानी का नूर था,
झुर्रियों में बुढ़ापे की थी झलक,
कई वर्षों से थी उसे एक सनक,
कुछ समय के बाद उन ऊँचे पर्वतों पर तिरंगा लहराया ,
कोई कुछ समझ न पाया,
ये कैसे संभव हो गया या थापा का अरमान पूरा हो गया,
सुना है लोगों के बीच की बातें हैं यारा थापा अपनी सनक पर कुर्बान हो गया,
होते हैं कुछ ऐसे किस्से जीवन के देख-सुन कर भी हम मानते नहीं,
एक था थापा जिसकी आँखों में जवानी का नूर था,
झुर्रियों में बुढ़ापे की थी झलक,
कई वर्षों से थी उसे एक सनक।
