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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Abstract

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

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उसे रोको

उसे रोको

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उसे रोको वो ग़जल कर रहा है 

खबर नहीं उसे वो कत्ल कर रहा है 


ख्वाब ही ख्वाब है अभी उम्र में उसके 

उसे रोको वो खुद को बड़ा कर रहा है 


मंजिले मिल जांयेंगी राह बहत है सामने उसके 

वो अल्फाज़ उकेर नींदों को क्यूँ खत्म कर रहा है 


क्या मजबूरी है क्यूँ आ रहा है वो यहाँ

उसे रोको वो जानता नहीं वो मौत को चूम रहा है 


लग रहें होंगे ये नज्म़ ,ग़जल ,शाइरी नायाब उसे 

नादाँ वो अभी शमशान को देखों कैसे घर लिख रहा है 


उम्र ना होती ग़जल करने की मालूम हमें मगर 

उसे रोको वो बिन ,सुकूँ के जीस्त को जन्नत कह रहा 


ज़िद है उसकी ऐसी क्या वो क्यूँ खुदकुशी कर रहा है 

कोई रोक नहीं रहा उसे वो खूबसूरत आँखों को लहूँ कर रहा है । 


बेज़ार हो गिर पड़ेगा जल्द वो 

उसे रोको वो ज़ख्म को हरा कर रहा है 


उसकी पीढियां पूछेंगी हमसे 

क्या गुनाह था उसे कब्र कर दिया है 


शबनम सा भींगा जज्बात था वो 

उम्र से पहले उसे क्यूँ उस्ताद कर दिया 


रोकना था ये गुनाह तुम्हें ऐ ग़ालिब

सबके सामने देखो वो आज खुदकुशी कर गया है ।


उसे रोको वो ग़जल कर रहा है 

खबर नहीं उसे वो कत्ल कर रहा है ।



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