उर्दू को मुसलमां समझते हो।
उर्दू को मुसलमां समझते हो।
यही तो दिक्कत है तुम्हारी तुम उर्दू को मुसलमाँ समझते हो।
पैदाइश है ये हिन्दुस्ताँ की तुम इसे गैरों की जुबाँ समझते हो।।1।।
ये कौन सा बाजार है जहाँ इंसानों की तिजारत होती है।
बोली लगती है यहाँ आबरू की तुम आबरू को सामाँ समझते हो।।2।।
कहाँ ढूंढते हो तुम खुदा को इधर से उधर मस्जिद-ओ-मंदिर।
घर में ही है अक्स उसका जिसे तुम अपनी माँ समझते हो।।3।।
