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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

उनका ख़त

उनका ख़त

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आज उनका ख़त हमारे पास आया है

दिल को लगा कुछ ख़ास पैग़ाम आया है,

ख़त में लिखा था उन्होंने कुछ ऐसा

दिल में छा गई ,बड़ी भारी निराशा।

दो लफ़्ज़ों में लगा जैसे

सांसो का काल आया है,

आज उनका ख़त हमारे पास आया है।

कह दिया उन्होंने ख़त में साफ साफ,

हम न कर सकेंगे कभी आपके पूरे ख़्वाब,

हमें बस आप भूल जाना,

आपके लिये ये अच्छा होगा।

उनका ख़त हमें बहुत डराने आया है

ख़त में लिखा उन्होंने मेरी मजबूरी है,

मोहब्ब्त से ज्यादा परिवार जरूरी है

उनका ख़त परिवार की इज्जत बचाने आया है।

आज उनका ख़त हमारे पास आया है

मोहब्ब्त का वादा हम निभा न सके

हो सके तो हमे माफ़ तुम कर देना,

उनका ख़त मोहब्बत को दीपक समझ

बस चंद रोशनी का उजाला देने आया है।

हम बेवफ़ा नही है सनम,

बस ज़माने से हो गए है बेदम,

तेरी याद में आंसूओ से भिगोकर

तुम्हें लिखा है ये खत सनम।

बस आंसूओ से तेरे

आग बुझाने का ख्याल आया है,

टूटकर आईने सौ बार गिरे हैं

एक एक शब्द पर दिल से लहू

निकलकर हज़ार बार आया है।

तब जाकर मैंने ये खत लिखा है।

तुम्हें साजन ये दिल क्या रूह से निकलकर

हर हिस्से में सिर्फ़ आपका नाम आया है,

हमे बस आप भूल जाना।

ये दिल का रिश्ता है,

मरते दम तक निभायेंगे

पर ज़माने के लिये हमारा रिश्ता

बदनाम होकर आया है।

अब बस हम अलग होंगे

शरीर से लेकिन दिल से नहीं

ये शब्द ख़त में हज़ार बार आया है,

आज उनका खत हमारे पास आया है।



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