उम्र
उम्र
ये जो वीरान से कुछ मंज़र ख्यालों में रहते है,
मेरे हिस्से की खुशियों को इन्हीं की नजर लगी है।
मासूम सी एक शरारत जो ठहरती थी मेरे लबों पर,
ढलती उम्र के शाए की कायल हुईं हैं।।
हर डूबते सूरज में ढलती चेहरे की वो रंगत,
ये अल्हड़ नादानियां भी अब बेगैरत हुईं हैं।
बेज़ार लोगों की आदत में छुपी गुफ्तगू,
अब खुद से ही बेचैनियां बढ़ा रही हैं।।
चलते चलते भटक जाती हूं किसी किस्से में,
ये जिंदगी मेरी कोई कहानी सी हुई है।
हैं यू तो दर्द बांटने वाले बहुत मगर,
दर्दों से भी एक यारी सी जुड़ गई है।।
ये उम्र का तकाज़ा है या राग अकेलेपन का कोई,
हर जाती नब्ज कोई अनसुनी धुन सुना रही है।
है चाहत की एक बार फिर जी लूं जो रह गया पीछे,
पर अब ये रूह भी अलविदा लेने को है।।