उम्र घटती गई, ख़्वाहिशें बढती गई
उम्र घटती गई, ख़्वाहिशें बढती गई
उम्र में ख्वाहिशों को ढालते हुए
कुछ इस तरह चल पड़े,
उम्र घटती गई, ख़्वाहिशें बढती गई||
राह दरिया नजाकत संग ले के बढ़े
पर नजाकत घटती गई, राह बढती गई||
सूफ़ियाने सफ़र की साज़िशे रहीं,
यारियाँ आफताबे जुस्तजू भी चलीं
बढ़ चले आयतों में गुज़ारिशें समेटे,
आयतें घटती गई, गुज़ारिशें बढ़ती गई||
नैन सपनो में डूबे हुए से मगर,
दिल मे अपनों की यादें छिपाए रहे
झिलमिलाते शहर से गुजरते हुए ,
खो गए उस चमकती रोशनी में यूँ कि,
यार घटते गये, सपने बढ़ते गये||
चले तो थे खरीदने को लबो पे मुस्कुराहटें
चंद पैसों पे होके फ़िदा यूँ,
गुलामे हसरत हुए कि
पैसे बढ़ते रहे, मुस्कुराहटें जाती रहीं||
शिद्दतें तो बहुत थी शिफा कि मगर
मोक्ष के राह का मसीहा ना मिला |
लड़खड़ाए कदम जब सहारों के लिए ,
साथ चलने को तब संगदिल ना मिला |
वक़्त की चाल में फिसलते हुए ,
कुछ इस तरह रूबरू हम ज़माने से हुए
ज़माना बढ़ता गया, हम पिछड़ते गए ||
उम्र में ख्वाइशों को ढालते हुए
कुछ इस तरह चल पड़े ,
उम्र घटति गई, ख़्वाहिशें बढती गई ||
