त्यौहार
त्यौहार
देश मेरे में बिछ रही लाशें
कैसे जलाएँ फुलझड़ी-पटाखे
चारों तरफ मची हाहाकार
कैसे मनाएँ हम कोई त्यौहार
हर तरफ हो रहा करुण रुदन
कैसे करें हम अभिनन्दन
बच्चों की खातिर हमको
वेदना को छिपाना होगा
उनके मासूम मुखड़ों पर
खुशी का दीप जलाने होगा
उनकी सच्ची मुस्कान से शायद
दुख का सूरज ढ़ल जाएगा
प्रार्थनाओं के इस समुन्द्र में
एक नया सवेरा उग आएगा
धूमधाम की नहीं जरूरत
प्रभु हैं सच्ची एक मूरत
भावनाएँ मन की समझ लेते
एक दीप को दीपावली कर देते
देश में जब छाएगी खुशहाली
तभी तो मनेगी होली-दीवाली।