तू और मैं
तू और मैं
तू और मैं....
तू दिन , मैं रात,
मिलना असम्भव,
किन्तु परन्तु मिल ही जाते थे,
मैं रोज सन्ध्या को क्षितिज पर , जहां सुर्य अस्त होता है,
तेरा इन्तजार करती थी,
तू भी दिवस व रात्री के कुछ पल चुराकर,
आता जरूर था , मुझ मे विलीन होने,
पुनः प्रातः उगते सुर्य के साथ मैं आ जाती तुझे जगाने,
विलीन होने तुझमें,
ना तू , तू , ना मैं, मैं,
मिलकर एक हो जाते थे हम।